मिटा दूँगी ग़ज़ल
कहकर खुदी को |
बता देना मेरी अगली सदी को |
समन्दर तिश्नगी से मात खाकर।
पुकारा करता है भीगी नदी को।
सही कहते हो वाइज़ा नहीं दिल।
जरूरत है बुतों की बंदगी को ।
महज़ टुकड़ा बचा पाता है लेकिन।
दियाला चाहता है तीरगी को।
कहीं रोटी कहीं कपड़े कहीं छत।
कहाँ मिलता है सबकुछ ही किसी को।
विसाले यार जिस्मो रू की हसरत।
करूँ मैं क्या मेरी आवारगी को।
उठा लाओ न अपनी शब की खातिर ।
बिठाओ रू ब रू फिर चाँदनी को |
बता देना मेरी अगली सदी को |
समन्दर तिश्नगी से मात खाकर।
पुकारा करता है भीगी नदी को।
सही कहते हो वाइज़ा नहीं दिल।
जरूरत है बुतों की बंदगी को ।
महज़ टुकड़ा बचा पाता है लेकिन।
दियाला चाहता है तीरगी को।
कहीं रोटी कहीं कपड़े कहीं छत।
कहाँ मिलता है सबकुछ ही किसी को।
विसाले यार जिस्मो रू की हसरत।
करूँ मैं क्या मेरी आवारगी को।
उठा लाओ न अपनी शब की खातिर ।
बिठाओ रू ब रू फिर चाँदनी को |